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मंगलवार, 8 अक्टूबर 2019

8:18 am

बदायूं :पिछले कुछ समय पहले शहर मे एक अखिल भारतीय कवि सम्मेलन आयोजित किया गया -- षटवदन शंखधार

कुछ इधर कई पढी ---------------------------------
कुछ इधर की पढी कुछ उधर की पढ़ी !
कैसे लगती भला तालियो की झड़ी !
एक श्रोता उठा और कहने लगा !
तुमने जब भी पढ़ी बाप की ही  पढ़ी !!

बदायूं :पिछले कुछ समय पहले शहर मे एक अखिल भारतीय कवि सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमे कई राष्ट्रीय स्तर के कवियो ने काव्य पाठ किया मंच का संचालन एक ओजस्वी कवि ने किया जिसने मंच की कलाकारी चलते हुये उस रचनाकार को सबसे पहले ही बुला लिया जबकि कई बार पहले उसने हमेशा ऐसे मंचो पर अपने आपको बीच मे पढने का निवेदन करते हुये देखा गया है लेकिन कुछ कवि शातिर दिमाग होते है कही शहर का व्यक्ति हिट न हो जाये इसलिए पहली बार मे ही बुला लो और फिर बेइज्जती करा दो !
उधर उस अकवि ने भी ऐसी रचना पढी जिसका जिसका वर्तमान परिस्थिति से दूर दूर तक कोई संबध नही था इतने मे ही एक बुजुर्ग श्रोता पीछे से झल्ला पढे और यह कहते हुये उठ गये कि इसने जब पढी बाप की ही पढी!
इतनी जब शहर के युवा कवि षटवदन शंखधार के कान मे पढी तो यह मुक्तक गढ दिया जिसकी चर्चा बहुत दूर दूर तक है

© षटवदन शंखधार
     बदायूँ (उ०प्र०)

षटवदन शंखधार

बुधवार, 2 अक्टूबर 2019

9:29 pm

अच्छा था मेरे दर से मुकर जाना तेरा - सलिल सरोज

1.
अच्छा था मेरे दर से मुकर जाना तेरा
आसमाँ की गोद से उतर जाना तेरा

तू लायक ही नहीं था मेरी जिस्मों-जाँ के
वाजिब ही हुआ यूँ बिखर जाना तेरा

मेरी हँसी की कीमत तुमने कम लगाई
यूँ ही नहीं भा गया रोकर जाना तेरा

तुझे हासिल थी बेवजह दौलतें सारी 
अब काम आया सब खोकर जाना तेरा

क्या आरज़ू करूँ तेरी तंगदिली से मैं
क्या दे पाएगा बेवफा होकर जाना तेरा

मैं सोचती रही कि हो जाऊँ तेरी फिर से
बुत बना गया हर बात पे उखड़ जाना तेरा

2.
जो तुम चाहते हो बस वही मान लेते हैं
झूठ को सच,सच को झूठ जान लेते हैं

अब तक अक्सों में ढूँढते रहे इक दूजे को
चलो आज हम खुद को पहचान लेते हैं

तिनका तिनका जोड़ के आशिया बनाएँ 
थोड़ा सा ज़मीन,थोड़ा आसमान लेते हैं

माँगों में सजे तुम्हारे भरी भरी हरियाली
अहसासों में गीता और कुरआन लेते हैं

खुशी की लहरें दौड़ा करें हमारे आँगन में
क्षितिज के आसपास कोई मकान लेते हैं

3.
वो मेरे दिए दर्द भी सम्भाल के रखती है
देखें जिगर उसका, कमाल के रखती है

कोई क़तरा भी जाया न हो आँसुंओं के
वो तो सपने भी देख - भाल के रखती है

क्या माँगा मैंने, उसने क्या क्या दे दिया
हर बात पे कलेजा निकाल के रखती है

जो चाहिए मुझे तो वो खुदा भी ला के दे
अपनी मुट्ठी में आकाश-पाताल रखती है

मैंने देखा ही नहीं उसे जी भर के कभी
खुद ही में मेरे प्यार का गुलाल रखती है   

लिखना है तो बादलों पे इबारत लिखो कोई
कभी शबनम तो कभी क़यामत लिखो कोई

कोहरों के बीच से  रास्ता निकल के आएगा
मंज़िलों के ख़िलाफ़ भी बगावत लिखो कोई

फसलें नफरतों की सब कट जाएँगी खुद ही
धरती के सीने पे ऐसी मोहब्बत लिखो कोई

कितनी सदी तक यूँ ही पिसती रहा करेगी
माँ के थके चेहरे पे अब राहत लिखो कोई

तुम कहाँ गुम हो,किस ख़्यालात में गुम हो
दो पल को  अपने लिए चाहत लिखो कोई

कुछ अनछुए पल, कुछ अनछुए अहसास
दिल के करीब से बातें निहायत लिखो कोई

सलिल सरोज
कार्यकारी अधिकारी
लोक सभा सचिवालय
संसद भवन ,नई  दिल्ली 

पता
मुखर्जी नगर
नई दिल्ली

9:23 pm

एक आदर्श माता -पिता

एक  आदर्श माता -पिता 

एक आदर्श  माता -पिता 
अपनी औलाद  के लिए 
सब कुछ  करता है 
कई बार  बस  अपना
ईमान छोड़
सब कुछ  बेचने को  तैयार 
यहाँ तक  कि  अपने आप को भी 
गिरवी रखनें  को हालात  के  हाथों  मज़बूर
ताकि 
उनके  बच्चे का  भविष्य 
और  आने  वाला  कल 
सुरक्षित सुनहरा व  उज्जवल हो 
बच्चों के हौसलों की  उड़ान 
कम  न  हो  और  वह 
बुलन्दियां छू  सके
इस  खातिर  उन्हें  चाहे  अपने ही  पंख 
क्यों  न  काटने  पड़े 
इतना  होने के  बाद भी 
अगर कोई  कमी  रह  गई 
तो वो  दोनों  वक्यी  ही 
बेबस  और  लाचार .....
बेबस और  लाचार ....
एक  आदर्श माता -पिता ........

आपका  प्यार 
वीरेंद्र  कौशल
9:21 pm

बेटियां मेरी बड़ी होनहार.....वीरेन्द्र कौशल

बेटियां  मेरी बड़ी  होनहार.......

बेटियां  मेरी बड़ी  होनहार  
रंजना छवि मानों  त्योहार 
दिल साफ  नीयत  साफ  
घर  आयी  ख़ुशियां अपार 
बेटियां  मेरी बड़ी  होनहार.......

बचपन  खेला घर महकाया  
हर किसी  से प्यार  पाया 
सब  की वो राजदुलारी 
चंचल स्वाभाव महकायें  क्यारी 
बेटियां  मेरी बड़ी  होनहार.......

 हर पल  करती  सब  की  सेवा 
ऐसा  मिले  सबको  मेवा 
बड़ी  गुणकारी   करें  परोपकार 
बेटियां  मेरी बड़ी  होनहार.......

पल में  माँ  सी  डांट पिलायें 
पर  कोई  चीज ना  बांट  पाये 
हर घर में हो  ऐसे त्योहार 
बेटियां  मेरी बड़ी  होनहार.......

 
चुटकियों  में  समास्या  सुलझायें 
जादू  इनका  सब पर छाये  
हर  जगह  हों  ऐसे संस्कार 
बेटियां  मेरी बड़ी  होनहार.......

पल में  सबका  मन  हर  लेती 
गैरों के  भी  पर  लगा  देती 
नानी  दादी  सी  त्योहार 
बेटियां  मेरी बड़ी  होनहार.......

घर  की  हैं  अलबेली  शान 
बहना अपनी  की  प्यारी  जान 
सब  पर  लूटाती अपना  प्यार 
बेटियां  मेरी बड़ी  होनहार.......

माँ  का  रूप पिता का  अंश  
रोशन  करेगी  नया  वंश 
एक नजर पहचानें सार 
बेटियां  मेरी बड़ी  होनहार.......

आवलें सी  हैं  कल्याणकारी 
हल्दी  सी  बहुत  गुणकारी 
बड़ी  भोली लिये  प्यार 
बेटियां  मेरी बड़ी  होनहार.......

सादा  जीवन  ऊँचे  ख़्वाब 
पार  किये  सभी  पडाव  
पूजा इबादत अरदास  गुलनार 
बेटियां  मेरी बड़ी  होनहार.......

सहेलियां  जैसे  खुशबू  द्वारा 
दूर  करे सदा  अंधियारा 
मेहकायें  जग सारा अपार 
बेटियां  मेरी बड़ी  होनहार.......

पिता  की जैसी मजबूरी 
पूरी  मानी  समझ  जरुरी
चेहरा सदा  प्रफुल्लित बारम्बार 
बेटियां  मेरी बड़ी  होनहार.......

दुर्गा की टोली बिमला की फौज 
ईश्वर की हवेली इन्द्रजीत की मौज 
संस्कारों  को  दे नयी रफतार  
बेटियां  मेरी बड़ी  होनहार.......

उम्मीद  नहीं  ये  आरजू 
हाथ  नहीं  मेरी  बाजू 
इन  सहारे  समय  की  धार 
बेटियां  मेरी बड़ी  होनहार.......
बेटियां  मेरी बड़ी  होनहार.......

आपका  प्यार 

वीरेन्द्र कौशल

9:17 pm

न दिल को जलाना अगर हो सके तो -बलजीत सिंह बेनाम

ग़ज़ल
न दिल को जलाना अगर हो सके तो
निग़ाहें मिलाना अगर हो सके तो

तुम्हे याद करते अगर मर भी जाऊँ
ख़बर को छुपाना अगर हो सके तो

तअल्लुक़ मिटाने से क्या फ़ायदा है
तअल्लुक़ बनाना अगर हो सके तो

जिसे है ख़ुदा पर बहुत ही अक़ीदत
उसे आज़माना अगर हो सके तो

किसी पर भी नेकी अगर तुम करो तो
न उसको जताना अगर हो सके तो

         बलजीत सिंह बेनाम
        103/19 पुरानी कचहरी कॉलोनी
        हाँसी(हिसार)
        मोबाईल:9996266210

विशिष्ट पोस्ट

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