शकील बदायूँनी
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शकील बदायूँनी के जन्मदिन पर विशेष लेख
बदायूँ...
यूं तो बदायूँ हमेशा से इल्म ओ अदब की खुशबू से मुअत्तर सरज़मीं रही है,ये महबूबे इलाही ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया की जाए पैदाइश (जन्मस्थान), और शहज़ादाए यमन हज़रत सुल्तानुल आरफीन और हज़रत शाह विलायत (छोटे -बड़े सरकार) और तमाम औलिया अल्लाह का मैदाने अमल रहने के सबब इल्म ओ मारिफ़त की निगाह से मदीनतुल औलिया कहा गया,दूसरी तरफ मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूँनी(अकबर के नवरत्नों में से एक), फानी बदायूँनी,महशर बदायूँनी,अदा जाफरी,जीलानी बानो,शकील बदायूँनी,इरफान सिद्दीकी ब्रजेन्द्र अवस्थी,उर्मिलेश शंखधार जैसे अदब के नायाब नगीनों ने इस शहर की अज़मत को चार चांद लगाए।
इनमें से एक शकील बदायूँनी जिनका आज यानी 3 अगस्त को यौम ए पैदाइश है,इनका कुछ ज़िक्र किया जाए।
ग़फ़्फ़ार अहमद जिन्हें दुनिया ने शकील बदायूँनी नाम से जाना,बदायूँ में 3 अगस्त 1916 को पैदा हुए, इस्लामिया मिस्टन हाई स्कूल(अब इस्लामिया इण्टर कॉलेज )बदायूँ से 1935 में हाई स्कूल और अलीगढ़ से 1939 में एफ.ए.(इण्टर),यहीं से 1942 में बी.ए. किया।
अपने शेरी सफर की शुरुआत में इन्होंने सबा, फ़रोग़ और फिर बाद में शकील तखल्लुस इख़्तेयार किया। फिल्मों में इनकी नग़मा निगारी की शुरुआत 1948 में फ़िल्म दर्द के साथ हुई, शकील बदायूँनी ने तक़रीबन 100 फिल्मों में गीत लिखे जिनमे दर्द,मेला,दुलारी,दीदार,बैजू बावरा,उड़न खटोला,अमर,शबाब,मदर इंडिया,सोहनी महिवाल, चौदहवीं का चांद,कोहनूर,मुग़ल ए आज़म,घराना,गंगा जमुना,बीस साल बाद,साहब बीबी और ग़ुलाम,सन ऑफ इण्डिया, मेरे महबूब,दूर की आवाज़, लीडर,दिल दिया दर्द लिया,राम और श्याम,आदमी वगैरह कुछ बेहद मक़बूल फिल्में हैं जिनमे शकील बदायूनी के गीतों ने अपना जादू बिखेरा है।
शकील बदायूँनी की शायरी के मजमूए 'रानाइयाँ','सनम व हरम", 'शबिस्तान', 'नग़मा ए फिरदौस'(नात व मनकबत),और उनके ज़रिए लिखे गए फिल्मी गीतों के मजमूए 'धरती को आकाश पुकारे'और 'कहीं दीप जले कहीं दिल' बेहद मक़बूल हुए।
आइए इनके कुछ अशआर के साथ जुड़ा जाए और इस अज़ीम शायर और गीतकार को खिराज ए अकीदत पेश किया जाए-
अक्सर तो दिल की गिरफ्तगी ए शौक़ की कसम
मुझ तक वो आ गए हैं इरादा किये बग़ैर
वो अगर बुरा न माने तो जहाने रंग ओ बू में
मैं सुकूने दिल की खातिर कोई ढूंढ लूं सहारा
आप ख़ूने इश्क़ का इल्ज़ाम अपने सर न लें
आप का दामन सलामत, अपने क़ातिल हम सही
ज़िंदगी के आईने को तोड़ दो
इसमें अब कुछ भी नज़र आता नहीं
देखूं उन्हें तो ताब ए नज़ारा नहीं मगर
उनको न देखना भी क़यामत है क्या करूँ
दीदा ओ दिल की तबाही मुझे मंज़ूर मगर
उनका उतरा हुआ चेहरा नहीं देखा जाता
ज़िंदगी आ तुझे क़ातिल के हवाले कर दूं
मुझसे अब ख़ूने तमन्ना नहीं देखा जाता
वही कारवां, वही रास्ते, वही ज़िंदगी, वही मरहले
मगर अपने अपने मक़ाम पर कभी तुम नहीं कभी हम नहीं
ग़मे आशिक़ी से कह दो रहे आम तक न पहुंचे
मुझे खौफ है ये तोहमत मेरे नाम तक न पहुंचे
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-शराफ़त समीर
दातागंज-बदायूँ
9058033485