आकाश 'क़ातिल बस्तवी'
3:49 am
ग़ज़ल :- इश्क़ को शतरंज करना वाजिब हैं - आकाश क़ातिल बस्तवी
इश्क़ को शतरंज करना वाजिब हैं।
घोड़े सी चाले चलना वाजिब हैं।।
क्या करोगे नदियाँ झील समंदर।
आँखों में डूब मरना वाजिब हैं।।
छूट जाते हैं रिस्ते अक्सर भीड़ में।
जिंदगी में अकेले चलना वाजिब हैं
वक्त दिन साल सब यहाँ बदल गये।
दोस्त तब तेरा बदलना वाजिब हैं।।
गैर के बाहो में खुशियाँ मिलती हो।
तब तो हर गैर से मिलना वाजिब हैं।।
कब तलक "क़ातिल" रास्ता देखोगे।
नींद आये तो सो जाना वाजिब हैं।।
क़ातिल बस्तवी
घोड़े सी चाले चलना वाजिब हैं।।
क्या करोगे नदियाँ झील समंदर।
आँखों में डूब मरना वाजिब हैं।।
छूट जाते हैं रिस्ते अक्सर भीड़ में।
जिंदगी में अकेले चलना वाजिब हैं
वक्त दिन साल सब यहाँ बदल गये।
दोस्त तब तेरा बदलना वाजिब हैं।।
गैर के बाहो में खुशियाँ मिलती हो।
तब तो हर गैर से मिलना वाजिब हैं।।
कब तलक "क़ातिल" रास्ता देखोगे।
नींद आये तो सो जाना वाजिब हैं।।
क़ातिल बस्तवी