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गुरुवार, 15 सितंबर 2016

एक पल का उसका दीदार-ए-हसरत

मुझे खिडकी से देखने का इंतजार कर रही थी,
यूँ इशारो मे वो दीवारो से बात कर रही थी ।
कभी मेरी यादों के ख्यालों में खोने लगी,
कभी मेरी फोटो को छुपके से निहार रही थी ।।
खत मेरे नाम लिख किताबो मे छुपाने लगी,
खत की गुलाब-ए-ख़ुशबू📃ये बता रही थी।
लिखते हुए उसके चाँद से चेहरे पर जुल्फे खुल रही थी,
आँखों मे आँसुओं की सैलाबे-गम दिख रही थी।।
प्यार की खुश्बू उसकी सांसो से आ रही थी,
चेहरे पर शोरे निशूर* देख मेरी धड़कन बडती जा रही थी।
उस दिन वो सुर्ख़ लाल जोडे में बहुत सुंन्दर लग रही थी,
मगर विकास पहली बार वो किसी और की लग रही थी ।।
शोरे निशूर= कयामत के दिन का शोर
©विकास भारद्वाज "सुदीप"

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