हिंदी साहित्य वैभव

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मंगलवार, 20 दिसंबर 2016

6:22 am

उसकी जुल्फो में एक शाम

जब मेरे खत पढ किताब मे रख कुछ होंटो पर गुनगुना रही थी,
सोचकर रातों को यादो मे सुन्दर सपने सजा रही थी ।
छत पर बैठी मेरा ज़िक्र कर,मुस्कुरा रही थी
ये हिचकी शाम से, यूँ ही तो नहीं आ रही थी ।।
दीवार-ए-आईना मे जुल्फो को हटा रही थी,
माँ से नजर बचाकर मुझसे मिलने आ रही थी ।
मेरे सामने वो बैठकर नजरें छुपा रही थी,
हम जानते थे कि रस्म-ए-उल्फ़त भी यूँ निभा रही थी ।।
उसके रूखसार पे तिल भी गजब ढा रहा था,
आँखो में काजल लगाकर मुझपर नजरो से पिलायें रही थी ।
उसकी आँखो में देखता रहा मैं और सुबह से सहर हो गयी,
फिर शाम को अपनी गली में मुझे खिडकी से देख रही थी ।।
ऐसी लडकी थी उसकी जुल्फो मे शबनम शाम थी,
जब गाँव लौटे तो मालुम पडा मोहब्बत किसी गैर की हो गयी ।
अचानक रास्ते मे मिली नजरे फेर ली उसने,
आज उसकी याद विकास दिले-नाशाद कर रही थी ।।

गुरुवार, 15 सितंबर 2016

6:25 am

एक पल का उसका दीदार-ए-हसरत

मुझे खिडकी से देखने का इंतजार कर रही थी,
यूँ इशारो मे वो दीवारो से बात कर रही थी ।
कभी मेरी यादों के ख्यालों में खोने लगी,
कभी मेरी फोटो को छुपके से निहार रही थी ।।
खत मेरे नाम लिख किताबो मे छुपाने लगी,
खत की गुलाब-ए-ख़ुशबू📃ये बता रही थी।
लिखते हुए उसके चाँद से चेहरे पर जुल्फे खुल रही थी,
आँखों मे आँसुओं की सैलाबे-गम दिख रही थी।।
प्यार की खुश्बू उसकी सांसो से आ रही थी,
चेहरे पर शोरे निशूर* देख मेरी धड़कन बडती जा रही थी।
उस दिन वो सुर्ख़ लाल जोडे में बहुत सुंन्दर लग रही थी,
मगर विकास पहली बार वो किसी और की लग रही थी ।।
शोरे निशूर= कयामत के दिन का शोर
©विकास भारद्वाज "सुदीप"

गुरुवार, 28 जुलाई 2016

7:20 am

माता-पिता ही मेरे फरिश्ते

सबक जिंदगी के पल पल सीख रहा हूँ,
माँ मै मंजिल-ए-तमन्नाओ के साथ बड रहा हूँ
जिंदगी के जिन रास्ते पर तलवे मेरे छिल रहे है,
कभी उसी रास्ते पर पिताजी कईयों मील चले थे ।।
तुम जिसे अपने प्यार के पिंजरे मे फँसा बैठी हो,
वो किसी माँ-बाप की उम्मीदों का सहारा होगा ।
मैं अपनी माँ की आँखो का तारा रहा हूँ ,
उनके आँख में आँसू आते ही मेरा अस्तित्व समाप्त होगा ।।
माता-पिता में बस रहें , साक्षात भगवान ।
मन्दिर-मस्जिद ढूँढता , मानव है नादान ।।
बिखरे-बिखरे सपने हुए ,तार-तार विश्वास ।
माँ-बाप को बेटो ने घर से करा दिया वनवास ।।
आजकल देखो घर बँटते नही है, सीधा नये बन जाते है ।
बेकार वस्तुये और माँ-बाप, पुराने घर में रह जाते है ।।
सदा चलेगें जिस पर अपने, मेरे न रहने के बाद ।
अभी विकास इन कदमों से, वो रास्ता बनाना है।।

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