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गुरुवार, 28 दिसंबर 2017

2:35 am

गजल- निश्छल आँखे


                       
चला आया बादल उमड़ता हुआ ।      
अम्बर से झमाझम बरसता हुआ ।।
               
कोई आशियाना भी था कल यहाँ ।
चमन आज ये कैसा उजड़ा हुआ ।।

किसी की आहें गूंजती हैं शायद ।
दफ़न है कोई राज अरसा हुआ ।।

बिखरते गऐ दिल के अरमाँ मेरे ।
कभी था ये गुलशन महकता हुआ ।।

तुफानी सी लहरो में कश्ती फँसी ।
अभी अपना दरिया है ठहरा हुआ ।।

जिसे देखती "अक्स" निश्छल आँखें ।
फलक पर जैसे चाँद ठहरा हुआ ....।।

© विकास भारद्वाज "अक्स"
27 दिसम्बर 2017

बुधवार, 13 दिसंबर 2017

8:07 pm

"माँ याद तुम्हारी सताती है "


माँ तो बच्चों के लिए खुद को भूल जाती है ।
माँ ही सदा हमें पापा की डाँट से बचाती है ।।
जमाने के ताने - बाने से घबराता मेरा मन,
माँ अब घर से दूर याद तुम्हारी सताती है ।।

माँ से हर मनुष्य के आस्तित्व का आधार है ।
माँ से पल बढ कर बनता जीवों का संसार है ।।
संयम, जीवन-त्याग और ममता की मुरत,
माँ तो इस धरती पर भगवान का अवतार है ।।

अपना ख्याल छोड़ कर परिवार के लिए माँ हर दुख सहती है ।
हम माँ का इंतज़ार करें न करें पर माँ हर पल इंतज़ार करती है ।।
जिसके ममता भरे आँचल को पाने भगवान भी तरस जाते है,
नजर लगें न बच्चों को माथे पर माँ काला टीका रखती है ।।

दुनिया के सब रिश्ते-नातों में सबसे प्यारा रिश्ता माँ का होता है ।
हर झूठे रिश्ते नातों में सुदीप बस सच्चा प्यार माँ का होता है ।।
ठोकर लगने पर रास्ते पर फिर हाथ पकड़ कर सभाँले रखती,
अनजाने में हुई गलती माफ कर दे वो दिल सिर्फ माँ का होता है ।।
   
©विकास भारद्वाज "सुदीप"
   12 दिसम्बर 2017

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