दीपावली दोहे
नन्हें दीपक की लगन, आँधी को दे मात ।
अँधेरा दूर भगा कर, उगा लालिमा प्रात ।।
सजा दिया थाल पूजा, साथ रहे परिवार ।
मनाओ घर - घर ऐसे , दीपों का त्यौहार ।।
बाज़ार में चमक है पटाखों की आवाज ।
खूब रौनक बढी है दीपावली पर आज ।।
चाइनीज दीपक छोड, मिट्टी दीप उद्दीप ।
जलाओ दिवाली पर, हर घर में अब दीप ।।
धन त्रयोदशी, गोवर्धन,भैया दूज सर्व ।
कार्तिक मास अमावस दीपावली पर्व ।।
पटाखे फूटने लगे, दीप जले अविराम ।
लक्ष्मी-गणेश पूजा आरम्भ होगी शाम ।।
घर में कैसे जलेगें , सजन इस बार दीप ।
काहे की दीपावली, जब तुम नहीं समीप ।।
लहंगा, चुनरी, बिंदी, कंगन, छुमके संग ।
तुझसे गोरी फूटते, फुलझड़ियों से रंग ।।
चमके जब लौ दीप की, लोग रहे हरसाय ।
तब घूँघट में नव वधू, मन ही मन मुस्काय ।।
भाईचारे की भावना को बल मिल जाए ।
सभी के घर में आनंद के सुखद क्षण आए ।।
©विकास भारद्वाज "सुदीप"
11 अक्टूबर 2017