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मंगलवार, 17 अक्टूबर 2017

12:02 am

दीपावली दोहे


नन्हें दीपक की लगन, आँधी को दे मात ।
अँधेरा दूर भगा कर, उगा लालिमा प्रात ।।

सजा दिया थाल पूजा, साथ रहे परिवार ।
मनाओ घर - घर ऐसे , दीपों का त्यौहार ।।

बाज़ार में चमक है पटाखों की आवाज ।
खूब रौनक बढी है दीपावली पर आज ।।

चाइनीज दीपक छोड, मिट्टी दीप उद्दीप ।
जलाओ दिवाली पर, हर घर में अब दीप ।।

धन त्रयोदशी, गोवर्धन,भैया दूज सर्व ।
कार्तिक मास अमावस दीपावली पर्व ।।

पटाखे फूटने लगे, दीप जले अविराम ।
लक्ष्मी-गणेश पूजा आरम्भ होगी शाम ।।

घर में कैसे जलेगें , सजन इस बार दीप ।
काहे की दीपावली, जब तुम नहीं समीप ।।

लहंगा, चुनरी, बिंदी, कंगन, छुमके संग ।
तुझसे गोरी फूटते, फुलझड़ियों से रंग ।।

चमके जब लौ दीप की, लोग रहे हरसाय ।
तब घूँघट में नव वधू, मन ही मन मुस्काय ।।

भाईचारे की भावना को बल मिल जाए ।
सभी के घर में आनंद के सुखद क्षण आए ।।

©विकास भारद्वाज "सुदीप"
11 अक्टूबर 2017 

शनिवार, 14 अक्टूबर 2017

5:50 am

हाइकु दीपावली

दीपक जले
दीपावली की शाम
उजाला फैले

दिवाली पर्व
जगमग बाजार
रोशन द्वार

चिराग जला
लक्ष्मी गणेश पूजा
कृपा कर दो

माटी के दीप
जलाओ सब लोग
चाइना छोड़ो

तुम करना
गरीबों को भी दान
पुण्य मिले

बम - पटाखे
क्षण भर आनन्द
प्रदुषण हो

©विकास भारद्वाज 'सुदीप'
14 अक्टूबर 2017 

5:50 am

गजल

आपको जबसे दिल में बसाने लगे ।
फिर नये गीत हम गुनगुनाने लगे ।।

चाँद उतरा बिखरने लगी चाँदनी ।
प्यार तुमसे हुआ वो बताने लगे ।।

कर दिया आपके इश्क ने फिर नशा ।
बिन पिये आज हम लडखडाने लगे ।।
   
जुस्तजू थी मुझे वो अचानक मिले ।
दोस्त हमको गले से लगाने लगे ।।

टूट कर जब बिखरने लगी जिंदगी ।
लोग क्या खूब हमको गिराने लगे ।।

जिंदगी ख्वाब अहसास ए आरजू ।
ये वफा, तुमसे यूँ हम निभाने लगे ।।

©विकास भारद्वाज "सुदीप"
16 अक्टूबर 2017

शुक्रवार, 13 अक्टूबर 2017

5:33 am

गजल


बह्र 👉👉  : २१२   २१२   २१२  २१२
अरकान   : फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
काफिया    :  ऐ  स्वर
रदीफ        :  रहे
🌹 🌹
तुम भुला हमको दिल जलाते रहे ।
रात भर याद कर वो रूलाते रहे ।।

साथ छूटे न तुमसे हमारा कभी ।
फक्त इसलिए जख़म को छुपाते रहे ।।

टूट जाऐ नहीं दिल तुम्हारा सनम ।
ग़म छुपा साथ तेरे मुस्कुराते रहे ।।     

इश्क का ये हमें रोग ऐसा चढा ।
रात भर वो ख्बावों में सताते रहे ।।
    
भूल हमको किसी गैर के नाम की ।
मेंहदी हाथों पर वो रचाते रहे ।।

हमने वादे वफा के निभाये सभी ।
वक्त - बेवक्त तुम याद आते रहे ।।

इक जरा सी हमारी खता क्या हुई ।
लोग फिर तो कमीयाँ गिनाते रहे ।।

चाहते हैं अभी भी अमन चैन हम ।
और वो लोग साजिश बनाते रहे ।।

खूब आतंक फैला रहा पाक फिर ।
सर जवानों के कब तक कटाते रहे ।।     

©विकास भारद्वाज "सुदीप"
12  अक्टूबर 2017 

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