कवितायें
2:54 am
युद्ध की विभ्रान्तियाँ कब तक रहेंगी
हे सखे,
युद्ध की विभ्रान्तियाँ कब तक रहेंगी.
ये निरर्थक क्रान्तियाँ कब तक रहेंगी.
यह अथक मन्थन हमें क्या दे सकेगा.
अंततः संसार जिस पथ पर चलेगा.
वह सुनिश्चिततः हमारा प्रेम होगा.
सार इस संसार का फिर क्षेम होगा.
युद्ध का यह वृक्ष सदियों तक फले पर,
क्रोध का उन्माद यह वर्षों चले पर,
एकदिन आख़िर हमें झुकना पड़ेगा.
हारकर उस मोड़ पर रुकना पड़ेगा.
तब अनर्गल चाहना तजनी पड़ेगी.
प्रीति की दुनिया नई रचनी पड़ेगी.
-
आदित्य तोमर,
वज़ीरगंज, बदायूँ.
ये निरर्थक क्रान्तियाँ कब तक रहेंगी.
यह अथक मन्थन हमें क्या दे सकेगा.
अंततः संसार जिस पथ पर चलेगा.
वह सुनिश्चिततः हमारा प्रेम होगा.
सार इस संसार का फिर क्षेम होगा.
युद्ध का यह वृक्ष सदियों तक फले पर,
क्रोध का उन्माद यह वर्षों चले पर,
एकदिन आख़िर हमें झुकना पड़ेगा.
हारकर उस मोड़ पर रुकना पड़ेगा.
तब अनर्गल चाहना तजनी पड़ेगी.
प्रीति की दुनिया नई रचनी पड़ेगी.
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आदित्य तोमर,
वज़ीरगंज, बदायूँ.