सुदीप कविता सरोवर
7:20 am
माता-पिता ही मेरे फरिश्ते
सबक जिंदगी के पल पल सीख रहा हूँ,
माँ मै मंजिल-ए-तमन्नाओ के साथ बड रहा हूँ
माँ मै मंजिल-ए-तमन्नाओ के साथ बड रहा हूँ
जिंदगी के जिन रास्ते पर तलवे मेरे छिल रहे है,
कभी उसी रास्ते पर पिताजी कईयों मील चले थे ।।
तुम जिसे अपने प्यार के पिंजरे मे फँसा बैठी हो,
वो किसी माँ-बाप की उम्मीदों का सहारा होगा ।
मैं अपनी माँ की आँखो का तारा रहा हूँ ,
उनके आँख में आँसू आते ही मेरा अस्तित्व समाप्त होगा ।।
माता-पिता में बस रहें , साक्षात भगवान ।
मन्दिर-मस्जिद ढूँढता , मानव है नादान ।।
बिखरे-बिखरे सपने हुए ,तार-तार विश्वास ।
माँ-बाप को बेटो ने घर से करा दिया वनवास ।।
आजकल देखो घर बँटते नही है, सीधा नये बन जाते है ।
बेकार वस्तुये और माँ-बाप, पुराने घर में रह जाते है ।।
सदा चलेगें जिस पर अपने, मेरे न रहने के बाद ।
अभी विकास इन कदमों से, वो रास्ता बनाना है।।
कभी उसी रास्ते पर पिताजी कईयों मील चले थे ।।
तुम जिसे अपने प्यार के पिंजरे मे फँसा बैठी हो,
वो किसी माँ-बाप की उम्मीदों का सहारा होगा ।
मैं अपनी माँ की आँखो का तारा रहा हूँ ,
उनके आँख में आँसू आते ही मेरा अस्तित्व समाप्त होगा ।।
माता-पिता में बस रहें , साक्षात भगवान ।
मन्दिर-मस्जिद ढूँढता , मानव है नादान ।।
बिखरे-बिखरे सपने हुए ,तार-तार विश्वास ।
माँ-बाप को बेटो ने घर से करा दिया वनवास ।।
आजकल देखो घर बँटते नही है, सीधा नये बन जाते है ।
बेकार वस्तुये और माँ-बाप, पुराने घर में रह जाते है ।।
सदा चलेगें जिस पर अपने, मेरे न रहने के बाद ।
अभी विकास इन कदमों से, वो रास्ता बनाना है।।